KAURAVON KA JANM MAHAABHAARAT KA VAIGYAANIK PAKSH

KAURAVON KA JANM MAHAABHAARAT KA VAIGYAANIK PAKSH

Authors: डॉ. बालकृष्ण मातापुरकर,
Publish Date/ Year : जुलाई २०२४ | Format: Paperback | Genre : History | Other Book Detail

एक स्त्री को 101 बच्चों का होना एक असंभव सी बात को महाभारत काल में विग्यान से समझााया गया है. ऋषी व्यास रचित श्रीमद भागवतम के आदि पर्व में वैग्यानिक तरीके से वर्णित है. कृत्रिम स्वयमचलित और स्वयमअनुशासित यंत्र में मानव शरीर के बाहर बच्चो का जन्म वृतांत लिखा हुवा है. लगभग आज से 5000 साल पहले ऐसा वैग्यानिक चमत्कार विकसित था यह अश्चर्य चकित करता है. कुतुहल जागृत करता है. यह आधुनिक विग्यान से कहीं ज्यादा विकास कैसे संभव था यह पुस्तक में पढिये. आश्चर्य की बात तो यह ह की यह भ्रूण ज्ञान ऋग्वेद काल से है. ऋभु ऋषी ने चमस पात्र के चार भाग कर गाय और घोडे बनाये थे. यहो ज्ञान का उपयोग कर महाभारत काल में मानव का जन्म कृत्रिम गर्भाषय में बनाया जा सका. आधुनिक विग्यान ग्यान की तुलनात्मक कसोटी पर क्या वह पुराना ग्यान सही साबित होता है? महाभारत कलीन उपयुक्त ग्यान मानवी समाज में लागू होने का अर्थ स्पष्ट करता है की यह विग्यान पहलेसे ही प्रचलित होना चाहिये. ऋग्वेद में ऋषी ऋभु और उनके दो भाईयों का वैग्यानिक योगदान इस बात को साबित करता है. इस पुस्तक में उनका क्या योगदान था यह वैग्यानिक तरीके से समझाया है. साप्रत पीढी को साधारणतया यह अनुमानित है कि भारतीयों को विग्यान पश्चिम सभ्यता ने सिखाया है. येशु किस्त तो 2000 साल से हैं परंतु अधिकांश पाश्च्यात्य वैग्यानिक सतरहवीं शताब्दि के बाद ही हुए है, जब भारत पर आक्रमण कर भारत देश को गुलाम बनाया गया तथा गुरूकुल शिक्षा पध्दति को असंवैधानिक कहकर समाप्ति का आध्यादेश लाया गया. और अंग्रेजी भाषा भारतीयों पर लाद दी गयी. इस कालखंड के पहले पाश्च्यात्य वैग्यानिक कहाँ थे? उत्तर प्रश्न में ही छिपा हुआ है. लेखक ने विग्यान वर्णन कर सबूत मात्र अनुबंध में दिय हैं. इसलिए अनुबंध पढकर समझने का प्रयत्न अवश्य करें तथा ऋषीयों का खजाना पढें तथा ऐसे ग्यान को प्रचलित करें यह प्रकाशक को अपेक्षा है.
Pages

८८ pages
Language

Hindi
Publication date

जुलाई २०२४
ISBN-13

९७८-८१-९७३७८०-९-६




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डॉ. बालकृष्ण मातापुरकर

डॉ. बालकृष्ण मातापुरकर

डा. बालकृष्ण मतापुरकर भारत सरकार के केंदिय स्वस्थ सेवा, से सेवानिवृत्त शल्यचिकित्सक हैं. अंतरराष्ट्रिय ख्यातिप्राप्त वैज्ञानिक हैं. इनके मौलिक अन्वेषण के लिये अंतरराष्टिय पेटेंट पुरस्कार प्राप्त हैं. भारत सरकार के सहयोग से 2001 एवम 2003 में मौलाना मेडिकल कालेज के नाम पर अमेरिका से पेटेन्ट मिला है. अन्वेषण भ्रूण कोषिका से शरीर के अंदर ही अवयव बनाने के पध्दति विकसित करने के लिये मिला है. नयी शल्यचिकित्सा पध्दति भी विकसित की हैं जो अंतर राष्ट्रिय विज्ञान पत्रिका तथा पाठ्य पुस्तकों म प्रकाशित हुई है. वेद पुराणों पर उनमें छिपे हुए विज्ञान को खोज कर कई पुस्तकें भी प्रकाशित हुई हैं. देश विदेश में वेद विज्ञान पर भाषण भी हुए है,. इन्होनें एक अंतरराष्टिय विज्ञान सभा में भ्रूण कोषिका पर अपने अन्वेषण पर भाषण देते समय एक स्त्री से 100 पुत्रों के जन्म पर महाभारत में लिखे विज्ञान तत्थ्यों को उजागर किया था. जिसे प्रेस ट्रस्ट आफ इन्डिया की वार्ता में विश्व में अनेक दूरदर्शन की वाहिनियों ने सन 2002 में प्रकाशित किया गया था. इसके पश्चात इन्होने वेद विज्ञान पर अनेक पुस्तकें प्रकाशित की है. अंतरिक्ष में प्रवास के लिये अंतरिक्ष मे ही भ्रूण कोशिका से खादय उत्पन्न करने की परणा दे कर सनसनी फैला दी. इन्हे कई राष्टिय और अंतर राष्ट्रिय सम्मान प्राप्त है. केंद्रिय स्वास्थ सेवा में इन्होनें स्वयम ही अंदमान तथा निकोबार दवीप समूह में कार्य सेवा मांग ली और पाँच वर्ष सेवा की. इस दोरान 1973-1976, वहाँ पर इन्टावीनस ग्लुकोज- सलाइन की आपूर्ति न होने से सलाइन कम होती थी. मरीजों के चिकित्सा के लिये कच्चे नारियल के पानी को नसों में देने पर अन्वेषण किया और विज्ञान पत्रिका में भी प्रकाषित किया. आवश्यकता अन्वेशण की जननी है इस कथन को सिध्द किया.